देश में हर साल औसतन 174 बच्चे लापता हो रहे हैं, और इनमें से लगभग 75% लड़कियां हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा एनडीटीवी इंडिया की एक विशेष रिपोर्ट में सामने आया है, जो बाल तस्करी और बच्चों की सुरक्षा के मुद्दे पर गहन चिंता व्यक्त करता है। इस रिपोर्ट में सामने आए आंकड़े और तथ्य देश में इस गंभीर समस्या की जटिलता को उजागर करते हैं, जो गरीबी, कमजोर कानून व्यवस्था और सामाजिक असमानता जैसे कारकों से और बढ़ रही है।
चौंकाने वाले आंकड़े
एनडीटीवी इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में लापता बच्चों की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में 24,429 बच्चे लापता हुए, जो 2019 में बढ़कर 29,243 और 2020 में 22,222 हो गए। हालाँकि, 2021 में यह संख्या 29,364 और 2022 में 33,650 तक पहुँच गई, जो इस बात का संकेत है कि समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। इनमें से लगभग 50% बच्चे कभी वापस नहीं लौट पाते, और 2 से 14 साल की आयु के बच्चों को तस्करों के निशाने पर होने की बात सामने आई है।
बाल तस्करी के कारण
रिपोर्ट में बाल तस्करी के विभिन्न कारणों का उल्लेख किया गया है, जिसमें यौन शोषण, अंगों की तस्करी, बंधुआ मजदूरी, भीख मंगवाना और बच्चों को नौकरानी या मजदूरी के लिए बेचना शामिल है। गरीबी और शिक्षा की कमी इन अपराधों के मूल कारणों में से एक मानी जाती है, जिसका फायदा तस्कर उठाते हैं। कई मामलों में बच्चे नौकरी के झांसे में आकर तस्करों के चंगुल में फंस जाते हैं, जहाँ उन्हें गुलाम बनाकर बेच दिया जाता है।
कानूनी कार्रवाई और चुनौतियाँ
हालांकि भारत सरकार ने बाल तस्करी को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं, जैसे कि पोक्सो अधिनियम 2012, बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम 1976, और अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम 1956, लेकिन इन कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन में कमी देखी जा रही है। रिपोर्ट में बताया गया कि बीएनएस की धारा 143 के तहत तस्करी करने वालों को 10 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है, जबकि धारा 366A के तहत 7 साल की सजा और जुर्माना का प्रावधान है। इसके बावजूद, तस्करों के खिलाफ कार्रवाई में देरी और कमजोर जांच प्रणाली इस समस्या को और जटिल बना रही है।
समाज और सरकार की भूमिका
रिपोर्ट में यह भी सवाल उठाया गया है कि क्या सरकार और समाज इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दे रहा है। कुछ यूजर्स ने सोशल मीडिया पर आरोप लगाया कि नेताओं के चेले इस गैरकानूनी कारोबार में शामिल हैं, और सरकार इसे रोकने में नाकाम रही है। एक यूजर ने लिखा, “देश में आम इंसान के साथ सब कुछ होता है, लेकिन सरकार सिर्फ अपने और अपनों के फायदे की देखभाल करती है।” दूसरी ओर, कुछ ने इसे “विकसित भारत” की विफलता करार दिया, जो सामाजिक मुद्दों पर ध्यान देने में असफल रहा है।
समाधान की राह
इस संकट से निपटने के लिए विशेषज्ञों का मानना है कि गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों, शिक्षा में सुधार, और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है। गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से जागरूकता फैलाना भी जरूरी है। बच्चों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने और तस्करों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करने की मांग तेज हो गई है।
निष्कर्ष
“लापता हो रहे हैं हर साल हजारों मासूम” शीर्षक से प्रकाशित यह रिपोर्ट देश के सामने एक गंभीर चुनौती पेश करती है। यह न केवल बच्चों की सुरक्षा पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज और सरकार की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करती है। क्या हम अपने मासूमों को इस भयावह सच्चाई से बचा पाएंगे, यह समय ही बताएगा। एनडीटीवी इंडिया की इस पहल से उम्मीद है कि इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा होगी और ठोस कदम उठाए जाएंगे।