Tuesday, November 18, 2025
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*भोपालपटनम: भद्रकाली में रेत माफिया का राज फिर लौटा, 40 हाइवा लादे चले तेलंगाना; प्रशासन की आंखें बंद, सत्ता का दबाव या भ्रष्टाचार का खेल?

*बीजापुर जिला ब्यूरो पुकार बाफना
भोपालपटनम,‌ छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के अंतिम छोर पर बसे भद्रकाली गांव में अवैध रेत उत्खनन का काला कारोबार एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है। दिन के उजाले में सैकड़ों ट्रक-हाइवा रेत से लदे-फदे खड़े नजर आ रहे हैं, जो सीधे तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद की ओर रवाना हो रहे हैं। स्थानीय ग्रामीणों का खून खौल रहा है—अपने ही जिले के संसाधनों का फायदा न उठा पाने की हताशा और माफिया के हौसले बुलंद होने का गुस्सा। लेकिन प्रशासन? वह तो चुपचाप तमाशा देख रहा है। खनिज विभाग की मौन सहमति और सत्ता पक्ष के कथित दबाव ने इस घोटाले को नई जान फूंक दी है। क्या यह सिर्फ लापरवाही है या गहरे भ्रष्टाचार का जाल?

लंबे अंतराल के बाद माफिया का कमबैक: पुरानी कार्रवाई का क्या हुआ?

यह कोई नई कहानी नहीं है। कुछ महीनों पहले ही भद्रकाली और आसपास के इलाकों में रेत माफिया की मनमानी पर प्रशासन ने तत्काल शिकंजा कसा था। तत्कालीन कार्रवाई में अवैध उत्खनन पर रोक लगाई गई, भंडारित रेत को सीज कर दिया गया और । ग्रामीणों को लगा था कि अब तो स्थायी समाधान हो गया। लेकिन हकीकत? माफिया ने सिर्फ सिर छिपाया, पूंछ बाहर रखी। अब वे लंबे अंतराल के बाद फिर सक्रिय हो चुके हैं, और इस बार भी उतने ही ।
सूत्रों के मुताबिक, पिछले हफ्ते से ही भद्रकाली नदी किनारे पर 40 से अधिक हाइवा और ट्रक रेत लादने के लिए खड़े मिल रहे हैं। ये वाहन खुले आम, बिना किसी रोक-टोक के रेत भर रहे हैं और सीधे तेलंगाना बॉर्डर की ओर बढ़ चले हैं। एक स्थानीय किसान, नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, “हमारे गांव की नदी का रेत हमारे जिले के निर्माण में इस्तेमाल होना चाहिए। लेकिन माफिया इसे हैदराबाद के बाजारों में बेच रहे हैं। हमारा क्या? सड़कें टूटी, घर बनते ही नहीं।” ग्रामीणों में नाराजगी चरम पर है,
सबसे बड़ा सवाल तो यही है—इतनी बड़ी मात्रा में रेत का अवैध परिवहन बिना प्रशासन की निगाह के कैसे संभव? सूत्रों का दावा है कि खनिज विभाग के अफसरों की ‘मौन सहमति’ के बिना यह सारा खेल नहीं चल सकता। “रातोंरात इतने हाइवा आ जाएं, रेत लाद लें और बॉर्डर क्रॉस कर लें—यह तो साफ तौर पर सिस्टम की मिलीभगत का नतीजा है,”
पर्यावरण और ग्रामीणों पर कहर: नदी का दोहन, जीवन का संकट
भद्रकाली जैसे सीमावर्ती इलाकों में अवैध उत्खनन सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि पर्यावरणीय आपदा भी है। नदी तटों का अंधाधुंध दोहन न केवल मिट्टी कटाव बढ़ा रहा है, बल्कि भूजल स्तर को भी गिरा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि रेत माफिया के कारण नदी का प्रवाह बदल गया है, बाढ़ का खतरा बढ़ा है। “हमारे खेत सूख रहे हैं, मछली पकड़ना मुश्किल हो गया। माफिया को फायदा, हमें नुकसान,” एक बुजुर्ग महिला ने आंसू पोछते हुए कहा।
और सबसे दर्दनाक—स्थानीय निर्माण कार्य ठप। भोपालपटनम जिले में सड़कें, स्कूल, अस्पताल—सब रेत की कमी से प्रभावित। लेकिन माफिया को फिक्र नहीं। वे तो हैदराबाद के रियल एस्टेट कारोबारियों को सप्लाई कर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। अनुमान है कि रोजाना 500-600 टन रेत इस तरह तस्करी हो रही है, जिससे लाखों का काला धन बह रहा है।
भोपालपटनम-तेलंगाना बॉर्डर पर माफिया का नेटवर्क सालों से सक्रिय है। हाइवा न केवल रेत लाद रहे, बल्कि सुरक्षा के नाम पर माफिया के गुर्गे भी तैनात हैं। कोई स्थानीय पुलिस पेट्रोलिंग? नाममात्र की। एक पूर्व पंचायत सदस्य ने बताया, “रात में तो खैर, लेकिन दिन में भी ये ट्रक खुले घूम रहे हैं। चेकपोस्ट पर नजर क्यों बंद?” यह सवाल जिला पुलिस और खनिज विभाग दोनों से है। अगर तत्काल छापेमारी हो, तो लाखों का सामान जब्त हो सकता है। लेकिन देरी हो रही है—क्या इंतजार?
। जहां संसाधन स्थानीय विकास के लिए हैं, वहां माफिया का कब्जा हो गया है। सत्ता पक्ष का दबाव हो या विभागीय भ्रष्टाचार—दोनों ही लोकतंत्र के लिए खतरा हैं।

जिला ब्यूरो पुकार बाफना बीजापुर

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