बरेली। दिल्ली में मजदूरी कर जिंदगी की गाड़ी खींचने गए एक दलित परिवार के चार भाइयों के सपनों पर उस वक्त पानी फिर गया, जब तीन दशक बाद वे अपने गांव लौटे। गांव पहुंचकर उन्होंने देखा कि उनके पैतृक घर और खेत पर राठौर बिरादरी के कुछ लोगों ने कब्जा जमा रखा है। पीड़ित परिवार ने ग्राम प्रधान से फरियाद की, लेकिन मामला उल्टा पड़ गया। जमीन की नकल निकलवाने पर पता चला कि अब उनके पुश्तैनी हक को “ग्राम समाज” की जमीन घोषित कर दिया गया है।
जागन लाल, जिनकी उम्र 51 वर्ष है, ने बताया कि 35 साल पहले वे अपने पिता राम दयाल के साथ दिल्ली मजदूरी करने गए थे। उस समय वे और उनके तीन भाई नाबालिग थे। वहां रहते हुए एक भाई की मृत्यु हो गई। जीवनभर संघर्ष करने के बाद जब तीनों बचे भाई वापस गांव लौटे तो उन्हें अपनी ही मिट्टी पर पराया कर दिया गया।
पीड़ित जागन लाल ने बताया कि जैसे ही वे गांव पहुंचे, राठौर बिरादरी के लोगों ने उन्हें धमकाया और घर के भीतर घुसने से रोक दिया। अपनी जमीन के कागज मांगे तो प्रधान ने कहा कि यह तो अब ग्राम समाज की भूमि है।
परिवार ने पुराने अभिलेख निकलवाए तो चौंकाने वाला सच सामने आया। दस्तावेजों में स्पष्ट लिखा था कि उक्त भूमि और मकान उनके पिता राम दयाल के नाम दर्ज थे। लेकिन ग्राम पंचायत के रिकॉर्ड में हेरफेर कर उसे सार्वजनिक भूमि घोषित कर दिया गया।
दलित परिवार का कहना है कि अगर वे मजदूरी करने न जाते तो शायद ऐसा दिन देखने को न मिलता। जागन लाल ने रोते हुए कहा, “हमने गरीबी में भी ईमानदारी से मेहनत की, अब अपनी ही जमीन पर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। प्रधान से बार-बार कहा कि कब्जा हटवाया जाए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उल्टा धमकाया जा रहा है कि ज्यादा आवाज उठाई तो फर्जी मुकदमे में फंसा देंगे।”
परिवार ने जिला प्रशासन से गुहार लगाई है कि उनके पुश्तैनी हक को लौटाया जाए। उनका कहना है कि जब नकल में स्पष्ट दर्ज है कि जमीन उनके पिता की थी, तो ग्राम समाज में घोषित करने का कोई वैधानिक आधार नहीं बनता।
तीन भाई अब जिला कलेक्ट्रेट के चक्कर काट रहे हैं। उनका आरोप है कि गांव के दबंग उन्हें बार-बार जातिसूचक गालियां देकर बेइज्जत कर रहे हैं। परिवार ने मुख्यमंत्री से लेकर जिलाधिकारी तक को लिखित में शिकायत दी है।
पीड़ित जागन लाल ने कहा, “हम अति दलित समाज से हैं, इसलिए हमारी सुनवाई नहीं हो रही। हमारी जमीन पर कब्जा हटवाया जाए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।”
अब देखना होगा कि प्रशासन इस गंभीर मामले में क्या रुख अपनाता है। क्या 35 साल बाद लौटे गरीब मजदूरों को उनका हक मिल पाएगा या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा?
स्थानीय संवाददाता ई खबर मीडिया की रिपोर्ट