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पुणे में प्रवासी मज़दूर परिवार पर जानलेवा हमला – महिला का मंगलसूत्र छीना, बच्चे घायल, शिकायत के बाद भी पुलिस मौन

“किराएदार होना गुनाह बन गया?” – यह सवाल पूछते हैं कन्हैया गौतम, जो उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती से रोज़ी-रोटी की तलाश में महाराष्ट्र के पुणे पहुंचे थे।

अब वह और उनका परिवार वहां अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में हैं। कन्हैया गौतम का आरोप है कि 27 जुलाई 2025 को दोपहर करीब 12 बजे, उनके पूरे परिवार पर हमला किया गया। उनकी पत्नी का मंगलसूत्र छीना गया, मोबाइल फोन तोड़ दिया गया, बच्चों तक को नहीं छोड़ा गया – और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि स्थानीय पुलिस अब तक चुप्पी साधे हुए है।

पीड़ित कौन हैं?
शिकायतकर्ता कन्हैया गौतम (उम्र 35 वर्ष), उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती के निवासी हैं। वह बीते कई वर्षों से पुणे में मज़दूरी करते हैं और अपनी पत्नी मिला देवी (उम्र 30 वर्ष) तथा दो बेटों – कारण (15 वर्ष) और अर्जुन (13 वर्ष) के साथ वहीं रहते हैं।

घटना का विवरण
कन्हैया गौतम ने बताया कि 27 जुलाई को दोपहर 12 बजे उनके किराए के घर पर तीन स्थानीय लोग – सागर, अप्पा वाले और सोनिया वाले – अचानक आ धमके। उन्होंने गाली-गलौज करते हुए परिवार पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया। उनकी पत्नी का मंगलसूत्र छीन लिया गया। जब कन्हैया वीडियो बनाने लगे, तो आरोपियों ने उनका लगभग ₹50,000 का मोबाइल फोन तोड़ दिया।
इस हमले में कन्हैया की पत्नी का हाथ टूट गया, उन्हें स्वयं सिर और पैर पर गंभीर चोटें आईं, और दोनों बच्चों को भी आंख व शरीर पर चोटें पहुंचीं।

“किराएदार हैं, इसलिए निशाना बना रहे हैं” – कन्हैया की गुहार
कन्हैया का कहना है कि उन्हें इसलिए टारगेट किया जा रहा है क्योंकि वे किराएदार हैं और स्थानीय आरोपियों के कोई व्यक्तिगत कार्य करने से मना कर चुके हैं। यह परिवार शांति से जीवन जीना चाहता है, लेकिन उन पर बार-बार जानलेवा हमले हो रहे हैं।

पुलिस चौकी में शिकायत, लेकिन कोई सुनवाई नहीं
घटना के बाद कन्हैया गौतम ने नजदीकी पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज कराई। मगर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। उनका कहना है कि पुलिस हर बार जांच की बात कहकर उन्हें टाल रही है जबकि हमला करने वाले अब भी खुलेआम घूम रहे हैं और दोबारा हमले की धमकियां दे रहे हैं।

चंद्रशेखर आज़ाद तक पहुंचाना चाहते हैं अपनी आवाज़
कन्हैया गौतम चाहते हैं कि यह मामला भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद तक पहुंचे। उनका मानना है कि दलित-पिछड़े वर्ग के लोग अगर अपनी बात नहीं रखेंगे तो ऐसे अत्याचार और बढ़ेंगे। वह कहते हैं – “हमें इंसाफ चाहिए। डर के साए में नहीं जी सकते। अगर चंद्रशेखर भैया तक हमारी आवाज़ पहुंचेगी, तो शायद न्याय मिलेगा।”

अभी की स्थिति
कन्हैया गंभीर रूप से घायल हैं और चल-फिर नहीं पा रहे। उनकी पत्नी का इलाज जारी है। बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से बुरी तरह आहत हैं। परिवार डरा-सहमा है और लगातार सुरक्षा की मांग कर रहा है, मगर प्रशासन की ओर से कोई राहत नहीं मिली है।

अब सवाल प्रशासन से है – कब होगी कार्रवाई?
यह मामला स्पष्ट रूप से बताता है कि एक गरीब प्रवासी परिवार किस तरह एकतरफा हिंसा का शिकार हो रहा है और पुलिस की निष्क्रियता उस अन्याय को और बढ़ा रही है। यदि अब भी कार्यवाही नहीं होती, तो यह चुप्पी किसी दिन किसी और पीड़ित के घर में टूटेगी – तब शायद बहुत देर हो चुकी होगी।

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