जिला पूर्वी चंपारण के कल्याणपुर थाना क्षेत्र में रविवार को ज़मीन विवाद ने हिंसक और भयावह रूप ले लिया। एक ही गांव के दो पक्षों के बीच हुई मारपीट में महिला समेत कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। सबसे चिंताजनक स्थिति रेखा कुमारी (उम्र 30), पति राकेश प्रसाद यादव की है, जिन पर लोहे की रॉड से जानलेवा हमला किया गया। सिर पर गंभीर चोट आने के बाद उन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनकी हालत नाजुक बनी हुई है।
सिर पर लोहे की रॉड से प्रहार कर दिया गया है, जिसमें दो लोगों की स्थिति गंभीर है और उन्हें मोतिहारी सदर अस्पताल में रेफर कर दिया और दोनों की स्थिति नाजुक बनी हुई है।
पुराना विवाद बना हिंसा की जड़
पीड़ित मिथिलेश कुमार यादव (उम्र 32), पिता सत्यदेव प्रसाद यादव, का गांव के ही चानसी प्रसाद यादव, बुन्नी लाल यादव, रजन कुमार यादव और मुरारी कुमार यादव से वर्षों से ज़मीन को लेकर विवाद चला आ रहा था। रविवार को यह तनाव हिंसा में तब्दील हो गया और दूसरे पक्ष की ओर से लाठी, डंडे और लोहे की रॉडें चलने लगीं। हमले के दौरान रेखा कुमारी को विशेष रूप से निशाना बनाया गया।
पुलिस पर लापरवाही के आरोप, पीड़ित का छलका दर्द
घटना के बाद पीड़ित पक्ष ने पुलिस प्रशासन पर गंभीर लापरवाही के आरोप लगाए हैं। सोनालाल राय, निवासी सिसवा बसंत, ने पुलिस अधीक्षक मोतिहारी को ज्ञापन सौंपते हुए बताया कि कल्याणपुर थाना कांड संख्या 262/2025 में दर्ज एफआईआर में IPC की धारा 109 (साजिश) जानबूझकर नहीं जोड़ी गई है। यह दर्शाता है कि पुलिस किसी दबाव में काम कर रही है।
पीड़ित महिला रेखा कुमारी ने अस्पताल में मीडिया से रोते हुए कहा:
> “अगर मुझे कुछ हुआ तो इसके जिम्मेदार वे गुंडे होंगे जो आज भी खुलेआम घूम रहे हैं और अस्पताल में भी धमकी दे रहे हैं। हम अपने घर में भी सुरक्षित नहीं हैं।”
ये धाराएं जोड़ी गईं FIR में:
> भारतीय न्याय संहिता की धाराएं: 127(2), 115(1), 118(2), 303(2), 351(2), 352,
साथ ही POCSO एक्ट की धारा 12 भी लगाई गई है।
ग्रामीणों में उबाल, पुलिस पर कार्रवाई का दबाव
इस घटना से पूरे गांव में भय और तनाव का माहौल है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द से जल्द आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई तो वे सड़क पर उतरेंगे और एसपी कार्यालय का घेराव करेंगे।
पीड़ित परिवार का प्रशासन से मार्मिक निवेदन:
> “हमें न्याय दिलाइए… हमारी जान खतरे में है… किसी भी पल बड़ी अनहोनी हो सकती है। क्या न्याय की आस में ही हम मर जाएंगे?”
अब देखना यह होगा कि क्या प्रशासन पीड़ित परिवार की गुहार पर कान देता है या एक और केस बनकर फाइलों में दब जाएगा – न्याय के इंतजार में।